"ज़रा चेहरा इधर घुमा मेरे भाई, अपनी आँखें मत छुपा मैंने आँसू देख लिए हैं ".... "बड़ा बोलता था की मर्द कभी रोते नहीं" ...... ये शब्द थे मेरे रूम मेट अखिल के। हम उस समय एक ऐसी
Bollywood movie देख रहे थे, जो शायद हर किसी की पसंदीदा Movies में से एक ज़रूर होगी।
मैंने अपना सिर हल्का से घुमाया (हालाँकि मेरी नज़रें अभी भी LAPTOP पर ही थी) "देख लिए न?? चल अब निकल, तू जाकर अपनी मैगी सँभाल वरना जल जायेगी", मैं कमेंट पास करते हुए बोला, लेकिन सच यही था की मैं भी अपने Emotions को छिपाने की पूरी कोशिश कर रहा था जो की मुझसे हो नहीं पा रहा था। असल में मैं बिलकुल नहीं चाहता था की अखिल मुझे सुबकते हुए सुन ले।
बहुत बार आपके साथ भी ऐसा हुआ होगा जब आप अपनी Family के साथ बैठ कर कोई
Bollywood Movie देख रहें हों और
Movie का Climax इतना Emotional हो की आप उस समय अपने रूम से किसी बहाने से बाहर चले गए हों या अपना Mobile phone छेड़ने लगे हों क्योंकि आप नहीं चाहते की कोई आपकी आँखो में आँसू देख ले, है न ??
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सौजन्य से : तारे ज़मीन पर |
आज हम ऐसी ही एक मूवी के बारे में बात करेंगे और शायद ये पेंटिंग देख कर आप समझ ही गए होंगे की मैं किस मूवी की बात करने जा रहा हूँ। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ हमारे देश में बनी कुछ बेहतरीन फिल्मों में से एक है हमारे Mr. perfectionist यानी
आमिर खान द्वारा निर्देशित 2007 में आयी Movie और भारत की तरफ से उस समय
Academy awards के लिए एकमात्र official entry "
Taare zameen par"
हम में से ज़्यादातर लोगों ने ये
Movie कईं बार देखी है और इसकी कहानी लगभग सभी जानते हैं,लेकिन मेरा मानना ये है की अगर इस
Movie की ख़ूबसूरती को कोई चार चाँद लगाता है तो वो है इस
Movie का Climax, 13 साल पहले आयी ये
Movie आज भी फ्रेश सी महसूस होती है। भई, इस
Movie के
Climax को देखकर एक बात तो पक्की हो जाती है की
Amir khan एक अच्छा एक्टर होने के साथ साथ एक बहुत ही कुशल डायरेक्टर भी हैं। यूं ही नहीं उन्हें Mr. Perfectionist कहा जाता। किसे पता था की आमिर खान अपनी पहली ही
Movie में ऐसा कमाल कर दिखाएँगे। फिर बात चाहे माँ और बेटे के बीच अटूट बंधन को दिखाने की हो या एक शिक्षक और छात्र के बीच विश्वास का अनूठा रिश्ता कायम करने की,
Amir khan ने हर क्षेत्र पर बेहद बारीकी से काम करते हुए एक बड़ी ही प्यारी
Movie बनाई है। आज हम जानेंगे की किस वजह से
Taare zameen par हमारे दिल में बस गयी।
Bollywood movie "Taare zameen par" climax का analysis
अगर आप ध्यान से देखें तो आप पाएंगे की
Movie का
Climax अपने आप में ही एक बेहतरीन कला का नमूना है।
आज हम इस
Bollywood Movie के क्लाइमेक्स के कुछ Important फ्रेम्स की Help से ये समझने की कोशिश करेंगे की कैसे
Amir khan ने हमारे छुपे इमोशंस को बाहर निकालने में बड़ी ही चतुराई और सहज रूप से इस पूरे Sequence
को शूट किया। जो भी मैं आज आपसे शेयर करने जा रहे हूँ वो मेरे खुद के विचार हैं जो शायद आपके विचारों से अलग भी हो सकते हैं।
जैसा की आप सब जानते हैं की हमारे
Amir khan साहब यानी निकुम्भ सर स्कूल में एक Painting Competition रखते हैं जहाँ पर स्कूल के लगभग सभी Students और Teachers हिस्सा लेते हैं।
Taare zameen par के इस हिस्से की शुरुआत होती है एक बड़े ही प्यारे से गाने "खोलो खोलो दरवाज़े परदे करो किनारे, खूंटे से बंधी है हवा मिलके छुड़ाओ सारे"... गाना शुरू होते ही आप महसूस करेंगे की आपको थोड़ी "
Feel good" वाली फीलिंग आने लगती है और आप यकीन मानिये डायरेक्टर भी आपको Exactly यही फील कराना चाहता है। गाने के बोल बिलकुल सीधे और सरल हिंदी में लिखे गए हैं यहाँ पर
प्रसून जोशी जी ने Lyrics को सिंपल रखते हुए भी Lyrics की क्वालिटी के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं किया है।
इसी दौरान बीच में एक Moment ऐसा आता है जहां आप चाह कर भी अपनी हँसी रोक नहीं पाते. जी हाँ, मैं उसी सीन की बात कर रहा हूँ जब ईशान के हिंदी टीचर अपनी Painting बनाते है और एक टीचर और आस पास बैठे बच्चे उनकी पेंटिंग पर हँसते हैं।
बिलकुल ऐसा ही कुछ English और P.T टीचर के साथ भी होता है।
Movie में
ऐसा दिखाकर बड़े ही बेहतरीन तरीके से डायरेक्टर अपने ऑडियंस के मन से उन Teachers के प्रति पैदा हुई कड़वाहट को भी निकाल देता है जो की हमें
Movie के दौरान ईशान के प्रति इन लोगो का रुखा स्वाभाव दिखा कर दी गयी थी। ऐसा दिखा कर हमें बहुत ही पॉजिटिव फील कराया जाता है, ये सब बिलकुल उसी थ्योरी पर आधारित है जैसे भारी बारिश के आने से पहले मौसम का ठंडा और सुहावना हो जाना।
कैसे बिखेरा गया creativity का जादू ?
Taare zameen par का म्यूजिक दिया है
शंकर-एहसान-लॉय ने जो बहुत ही क्रिएटिव म्यूजिक directors हैं, उन्होंने बड़ी ही होशियारी से इस Song में सिर्फ Wooden guitar का use किया है जिस से यह Song बिलकुल रिलैक्सिंग बन जाता है। इस पूरे सीक्वेंस में न ही सिर्फ Camerawork बल्कि Editing का भी बहुत ही अच्छा उदहारण देखने को मिलता है।
आइये इसे समझने की कोशिश करते हैं।
Movie के इस हिस्से में
शुरुआत से ही हमें पूरे
Amphitheater के बेहद सुंदर वाइड एंगल शॉट्स दिखाए जाते है, रंगो का बेहतरीन इस्तेमाल और कैमरे का सही उपयोग अपने आप में ही एक अलग कहानी बयाँ करता है।
और इसी के साथ साथ Camera अलग अलग लोगों पर Randomly दौड़ाया जाता है। ये सब ऑडियंस (यानी हमें) को Competition का हिस्सा होने का एहसास दिलाता है।
इस गाने के दौरान हमें ईशान के पेंटिंग बनाते हुए कुछ बेहद खूबसूरत closeup शॉट्स दिखाए जाते हैं, इन शॉट्स को देखते हुए हमारे मन में ये सवाल ज़रूर उठता है की आखिर ईशान painting मे क्या बनाने वाला है?
ये जानने की जिज्ञासा तब और ज़्यादा बढ़ जाती है जब उन्ही closeup शॉट्स से एक शॉट में सिर्फ ईशान की आँखें और Painting करता हाथ दिखाया जाता है। ये शॉट मेरे पसंदीदा शॉट्स में से एक है।
वहीं दूसरी तरफ इसी closeup शॉट तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हमें यह सोचने पर मजबूर किया जाता है की आखिर निकुम्भ क्या बना रहा होगा ?
ईशान की पेंटिंग अब पूरी हो चुकी है और उसके Facial expressions से ये समझना आसान है की उसने जैसा सोचा था उसने लगभग बना लिया है और वह अपने किये काम से संतुष्ट है।
ईशान को अब उसकी जीत के लिए स्कूल के प्रिंसिपल ईशान को Prize लेने के लिए बुलाते हैं लेकिन low confidence और हमेशा दूसरों से कम आंके जाने के चलते वह अपना सिर हमेशा की तरह झुका कर रखता है, और दूसरे बच्चो के बीच में छुपने की कोशिश करता है। जब ईशान को अवार्ड दिया जाता है, तब भी उसका सिर झुका हुआ ही रहता है। झुके कंधे और झुका हुआ सिर ईशान के low confidence लेवल को शो करता है।
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बड़ा मार्मिक सा लगता है ये सब सोचना की कैसे एक 8-9 साल का नन्हा सा बच्चा अपने अंदर एक अकेलापन और माँ से दूर हो जाने का दुख छुपाये बैठा था। और अब वह अपने आंसू रोक नहीं पाता। बैकग्राउंड स्कोर भी अचानक से लाउड हो जाता है। बैकग्राउंड म्यूजिक का लाउड हो जाना कहीं न कही हमें ईशान और उसकी इस Achievement पर प्राउड फील करने पर मजबूर करता है और बस इसी जगह Editor के द्वारा राजन (ईशान का एकमात्र दोस्त जो की चल नहीं सकता) का एक छोटा सा शॉट दाल दिया जाता है जिसमे राजन की आँख से भी ईशान की इस उपलब्धि पर अपने आँसू रोके नहीं जाते। राजन का ये शॉट छोटा ज़रूर है लेकिन बहुत ही इफेक्टिव है। मेरा मानना है की राजन का ये शॉट डालना इस पूरे सीक्वेंस की इमोशनल वैल्यू और खूबसूरती को और ज़्यादा बढ़ा देता है।
असल में ये भी एक बहुत ही उम्दा तकनीक है जो वर्ल्ड के कईं गिने चुने होशियार
directors अपनी
movies में यूज़ करते हैं। "
इक़बाल"
Movie के वो आखिरी सीन्स तो याद ही होंगे न आपको जब आखिर में "इक़बाल" (
श्रेयास तलपड़े ) इंडियन क्रिकेट टीम के लिए सेलेक्ट होकर अपने करियर का पहला गेंद डालने के लिए रन-अप लेता हुआ दौड़ता है और भीड़ में खड़ी उसकी छोटी बहन (
श्वेता बासु प्रसाद ) के आँसू छलक पड़ते हैं क्योंकि उसने इक़बाल का स्ट्रगल देखा है, उसे महसूस किया है। इक़बाल की इस कामयाबी में जितना अहम किरदार उसकी खुद की मेहनत निभाती है, उतना ही अहम किरदार उसकी बहन का भी है। इसलिए अपने भाई की कामयाबी उसे अपनी कामयाबी लगती है। बिलकुल वही परिस्थितियाँ यहाँ भी है।
अब आप मुझे बताइये की एक छोटा सा बच्चा जो ठीक से पढ़ लिख नहीं सकता, जिसकी मजबूरी को उसके Parents ने हमेशा उसकी शैतानी समझा हो, जिसका हर दिन एक नयी जंग बनकर उसके सामने खड़ा हो, अंदर ही अंदर कितना घुटता होगा। अवार्ड तो छोड़िये Appreciation का जिसने कभी एक शब्द न सुना हो। आज हर किसी की जुबां पर उसका नाम है और आख़िरकार उसके टैलेंट को भी एक नयी पहचान मिली है। ऐसे बच्चे के लिए उसकी लाइफ का पहला अवार्ड कितनी इम्पोर्टेंस रखता होगा, है न?
इस Scene में ईशान जैसे एक छोटे से बच्चे का इमोशनल हो जाना ऐसा लगता है मानो वो अपने टीचर को इस अवार्ड और तालियों की उस गूँज के लिए शुक्रिया अदा करना चाह रहा हो जो शायद उसे कभी न मिल पाती अगर निकुम्भ उसे गाइड न करता।
इस Scene में ईशान का अपने teacher से लिपट कर रो पड़ना, बिलकुल ऐसा लगता है मानो अकेलेपन के इस काले अँधेरे के बीच उसे रोशनी की एक किरण मिल गयी हो। और कोई तो है जिसने उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसकी मदद की। सच मानिये आप चाहे जितने भी strong क्यों न आप उस सीन पर अपने emotions को बाहर आने से नहीं रोक पाते हैं। साथ के साथ इस
Movie में characters को इतना strongly develop किया गया है, की ईशान की यह जीत हमें कहीं न कहीं हमें अपनी जीत महसूस होती है और शायद ये भी एक कारण है की हमारी आँखें नम हो जाती है।
इस फ्रेम के फ़ौरन बाद फोकस होता है निकुम्भ यानी ईशान के टीचर पर जो खुद ये देख कर भावुक हो जाता है की उसका Student सिर्फ इस प्रतियोगिता को ही नहीं बल्कि अपनी कमज़ोरियों से भी जीत चुका है। और यहाँ जीत सिर्फ ईशान की ही नहीं बल्कि निकुम्भ की भी हुई है।
क्या है मेरा मानना?
आप यकीन नहीं मानेंगे लेकिन इस Post को बनाते वक़्त मैंने कईं बार ये सीन देखा और हर बार मेरी प्रतिक्रिया एक सी ही रही। हमारे यहाँ ऐसी सवेंदनशील
Movie बना पाना दोबारा मुमकिन हो पायेगा या नहीं ये तो वक़्त ही बताएगा। लेकिन मै चाहता हूँ की अगर
Bollywood movie बनाते समय क्वांटिटी की बजाये क्वालिटी पर ध्यान दे तो आने वाले समय में हमारा Oscar का सपना ज़रूर पूरा हो सकता है। क्या ऐसी कोई फिल्म रही है जिसने आप के दिलो दिमाग़ पर गहरी छाप छोड़ी हो और ज़िन्दगी को लेकर आपकी सोच बदल दी हो, अगर इसका जवाब हाँ है तो बेझिझक आप मुझे Comments के जरिये बता सकते हैं। जल्द ही मिलता हूँ आपसे एक नए पोस्ट में तब तक के लिए नमस्कार।
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