Sushant singh rajput हमें क्या सीखा गए और Depression se bahar kaise nikle?


Sushant singh rajput हमें क्या सीखा गए और Depression se bahar kaise nikle?
Image source: Google |Sushant singh rajput| (21.01.1986 - 14.06.2020)
Sushant singh rajput अब हमारे बीच नहीं रहे, यकीन कर पाना बेहद मुश्किल है। कहा ये जा रहा है की वो Depression से जूझ रहे थे और दुख इस बात का है की Depression se bahar kaise nikle? इस सवाल का जवाब उन्हें आत्महत्या के रूप में मिला। करियर के इस पड़ाव पर जब कोई इतना सक्सेसफुल हो, मायानगरी में बड़े बड़े सितारों के बीच अपनी अलग चमक बिखेरने में कामयाब हो जाए। दौलत और शोहरत की जिसके पास कमी न हो। इस भीड़ में भी क्या वो इतना अकेला हो सकता है की वो इतना बड़ा कदम उठा ले? सोच कर भी शरीर में सिहरन सी पैदा हो जाती है। आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान ही नहीं हो सकता।

उनके चले जाने के बाद सोशल मीडिया पर तो मानो ट्वीट्स की बाढ़ ही आ गयी। हर कोई उनको श्रद्धांजलि देता पाया गया। इस दौरान कुछ ऐसी बातें सामने आयी जिस से लगने लगा की बॉलीवुड दूर से जितना रंगीन दिखता असल में उतना ही रंग हीन है। कहा ये जा रहा है की इतना बेहतरीन कलाकार होने के बावजूद भी वो बॉलीवुड में होने वाली गन्दी  राजनीती और भाई भतीजा वाद का शिकार हो गए। अब धीरे धीरे बॉलीवुड का काला चेहरा दुनिया के सामने आ रहा है। जो लोग इस समय से गुज़र चुके हैं वो धीरे धीरे सभी राज़ खोल रहे हैं। खैर इस घटना से जुड़े राज़ बहुत हैं और आपको आज की तारीख में आपको इंटरनेट पर इस घटना से रिलेटेड बहुत कुछ पढ़ने और देखने को मिल जायेगा लेकिन असल बात ये है की सचाई शायद ही कभी सामने आ पाए।

दुःख इस बात का है की ये सितारा अपने साथ साथ वो जवाब भी ले गया जो हमारे दिलों दिमाग में हमेशा के लिए अब सवाल बन कर रह जाएंगे। कारण जो भी हो लेकिन Sushant singh rajput का इस कदर चले जाना किसी के गले नहीं उतर पा रहा है। लोगो का कहना है की वो बॉलीवुड में हो रही राजनीती का शिकार हो गए, इसलिए वो depression में थे। यूट्यूब और न्यूज़ चैनल दोनों ही इस कंटेंट से भरे पड़े हैं लेकिन मेरा मानना है की हमे Sushant singh rajput ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा सबक सीखा गए। इसलिए ज़िन्दगी काटने के बजाये ज़िन्दगी जीना सीखिए, क्या पता कल हो न हो।

"Depression" या कह लो "अवसाद" यह शब्द जितना छोटा है उतना ही घातक भी, भागा दौड़ी से भरी इस ज़िन्दगी ने न जाने क्यों हमें एक अजीब से और अनचाहे कॉम्पीटीशन के माहौल में ला खड़ा किया है। इसी भाग दौड़ और एक दूसरे से आगे निकलने की धुन का ही नतीजा है की Depression नाम की ये बीमारी जो कभी कभी ही सुनने ।

Sushant singh rajput का हम सब के बीच से अचानक यूँ चले जाना न सिर्फ मेरी समझ से परे है बल्कि अकल्पनीय भी है। उनका हमारे बीच न होना ये साबित करता है की इस बिमारी के परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं। ये मानसिक बिमारी न धर्म देखती है न जात , न अमिर न ग़रीब, न छोटा न बड़ा और यदि एक बार इसे आपने अपने ऊपर हावी होने का मौका दे दिया तो ज़िन्दगी किस कदर खोखली हो जाती है ये हम सोच भी नहीं सकते।

Sushant singh rajput  ही नहीं बल्कि ऐसे हज़ारों लाखों लोगों की अनकही और अनसुनी कहानियाँ हैं जिनके पन्ने हम यदि चाहें तब भी नहीं पलट सकते। आज ये पोस्ट लिखते हुए दिल पर एक अजीब सा बोझ है। आज इस पोस्ट में हम नज़र डालेंगे Depression नाम की इस बीमारी के कुछ कारणों पर और समझने की कोशिश करेंगे की कैसे कुछ आसान उपायों को अपना कर Depression se bahar kaise nikle.

आज भी जब ये पोस्ट लिख रहा हूँ  तब टेलीविज़न पर Sushant singh rajput की फिल्म "केदारनाथ" आ रही है और विडम्बना ये है की चाहते हुए भी मैं ये फिल्म नहीं देख पा रहा हूँ। दिल अभी भी ये सब मान ने को तैयार नहीं है की कैसे एक इंसान जिसने अपनी मेहनत के बलबूते इतना बड़ा मुकाम हासिल कर लिया, एक इंसान  कैसे अपने हँसते हुए चेहरे के नकाब के पीछे इतना बड़ा गम छुपा पाया की उसने अपनी परेशानी के आगे घुटने टेक कर इस तरह चले जाना ही बेहतर समझा।

वैसे तो depression का कारण कोई भी हो सकता है चाहे वो पढाई हो या करियर, पारिवारिक समस्या हो या आर्थिक समस्या ये किसी को भी और कभी भी हो सकता है। Sushant singh rajput के केस में क्या हुआ क्या नहीं वो तो इस मामले जाँच के पूरा होने पर ही पता लग पायेगा लेकिन  मैं आज आपके सामने इस पोस्ट के ज़रिये ज़िन्दगी के ऐसे ही  कुछ अहम पहलुओं पर रोशनी डालने की कोशिश करूँगा जिसमें आम तौर पर हम depression का शिकार हो जाते हैं। मैं कोशिश करूँगा आपको ये समझाने की कि किस तरह आप अपने बिगड़ते हालातों पर काबू पा सकते हैं।

अपने करियर का चुनाव ध्यान से करें और Depression se bahar kaise nikle ये समझना है तो आदत डाल लीजिये IGNORE करने की बहुत काम आएगी

Sushant singh rajput हमें क्या सीखा गए और Depression se bahar kaise nikle?

किसी ने बड़ी खूब बात कही है की "सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग" इस छोटी सी पंक्ति में जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक छिपा है ज़रुरत तो बस उस सबक को अपना लेने भर की है। हमें ये बात अच्छे से समझनी होगी की हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ लोग एक इंसान की सक्सेस का अंदाज़ा उसकी अर्निंग से करते हैं न की उसकी लर्निंग से।

मै मानता हूँ की ज़िन्दगी की गाडी का पहिया पैसों के दम पर ही चलता है लेकिन मेरी नज़र में एक इंसान जो अपना मनपसंद काम करके ठीक ठाक पैसा कमाता है वो ज़्यादा सक्सेसफुल है बजाये उस इंसान के जो उस से दोगुना या तिगुना पैसा कमाता है लेकिन हर सुबह उठकर उदास मन से ऑफिस जाता हुआ अपने काम को ज़रूर कोसता है।

इसलिए मेरा मानना ये है की कोई क्या कहेगा इस से आपको फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि उसके कुछ कहने से हो सकता हो आपको कुछ समय के लिए फर्क पड़े लेकिन अपनी ज़िन्दगी में लिया गया एक गलत फैसला आपकी पूरी ज़िन्दगी को बदलने की क्षमता रखता है। और इसी कारण से मैंने कईं लोगों को Depression का शिकार होते देखा है। मेरा एक दोस्त जो की एक

ऐसा कोई भी काम करने और चुनने से बचें जिस से आपको ख़ुशी नहीं मिल रही हो। क्योंकि हम कमाते हैं जीने के लिए न की जीते हैं कमाने के लिए। इसलिए किसी गलत रास्ते पर इतना दूर निकल जाना की अंत में Depression आपको चारों तरफ से घेर ले इस से बेहतर है की आप अपने करियर का चुनाव बड़े ही सोच समझ कर करें। जो आप बनना चाहते है उसी क्षेत्र में काम कर रहे लोगो से बात करें उनसे ये जान ने की कोशिश करें की आगे उस क्षेत्र में क्या क्या फायदे और कैसी कैसी दिक्कतें आ सकती है और समय आने पर उन दिक्कतों का हल निकाल पाना आसान होगा या मुश्किल।

Sushant singh rajput हमें क्या सीखा गए और Depression se bahar kaise nikle?

कामयाबी अपने साथ हमेशा चुनौतियाँ ज़रूर लाती है। दिक्कतों को दिक्कत समझने की बजाये उनको चुनौती समझ कर उनका सामना करना सीखें। दुनिया में आजतक ऐसा कोई ताला ही नहीं बना जिसकी चाबी न हो। इसी तरह ऐसी कोई प्रॉब्लम नहीं है जिसे सुलझाया न जा सके। लोग क्या बोल रहे हैं आपको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। लोगों का तो काम ही है बोलना वो बोलते आये हैं और बोलते ही रहेंगे।

मैं कईं ऐसे लोगों को जानता हूँ जो अपने इंटरेस्ट के बिलकुल उलट ऐसा कोई काम कर रहे हैं जो न तो उनसे किया ही जा रहा है और न ही छोड़ा जा रहा है। सिर्फ कुछ लोग क्या कहेंगे ये सोच कर हम अपने जीवन की गाडी किसी ऐसी सड़क पर उतार दे जहाँ खड्डे ही खड्डे हो तो भूचाल हमारी ज़िन्दगी में आएगा न की उनकी। उन्होंने तो तब भी चार बातें बनानी है और हमारे परेशान होने पर भी। तो जब लोगों ने बातें बनानी ही है तो क्यों न अपनी ख़ुशी का काम चुना जाए। ज़िन्दगी भगवान का दिया एक अनमोल तोहफा है। ये एक ही बार मिलती है और बहुत खुशनसीब होते हैं वो लोग जिन्हे ज़िन्दगी दोबारा एक और मौका देती है।

हमें ये समझना होगा की आप चाहे जीवन में कितना भी बड़ा मुकाम हासिल क्यों न कर ले तब भी लोग हमेशा आपको कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे, और ये बिलकुल सच है। आप अपने आसपास देखेंगे तो बहुत से लोग दिख जायेंगे आपको जो खुद कभी ज़मीन से उठ नहीं पाए और अगर कोई दूसरा उठने की कोशिश करता है तो उसे भी वो लोग वापस खींचने में लगे रहते है। अरे लोगों ने तो भगवान श्री राम तक को नहीं छोड़ा तो हम तो मामूली इंसान ठहरे। ये दुनिया जीने नहीं देती मेरे दोस्त। यहाँ भी डार्विन की थ्योरी ही काम करती है की जो सबसे ताकतवर है वही ज़िंदा रहेगा। तो अपने आप में वो ताक़त लाइए अपने करियर का सही चुनाव करके और लोगों को इग्नोर करना सीखिए।

Depression se bahar kaise nikle? ये सवाल किसी और से पूछने की बजाये अपने आप से पहले ये पूछिए की क्या आप एक अच्छे सामाजिक प्राणी हैं ?

Sushant singh rajput हमें क्या सीखा गए और Depression se bahar kaise nikle?

Depression के कईं कारण हो सकते हैं और सोशल मीडिया उन्ही कारणों में से एक है। आज सोशल मीडिया का ज़माना है और हर कोई इसे यूज़ करता है।  क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग हर कोई आपको सोशल मीडिया पर आज के समय में एक्टिव मिलेगा। मैं इसके खिलाफ बिलकुल नहीं हूँ  लेकिन मेरा मानना है की लोगों को इसका सही इस्तेमाल करना सीखना पड़ेगा। पिछले दस सालों में मैंने सोशल साइट्स को मात्र एक डिजिटल वेबसाइट से हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनते देखा है।रही सही कसर इंटरनेट के घटते हुए दामों ने पूरी कर दी।

बात उन दिनों की है जब फेसबुक ने हमारी ज़िन्दगी में अपने कदम ज़माने लगभग शुरू ही किये थे। प्रोफाइल पिक्चर को अपडेट करना, नए दोस्त बनाना, दोस्तों की पिक्चर्स लाइक करना और तो और कभी कभी उनसे लाइक्स बढ़ाने का सौदा करना की तू मेरी पिक्चर पर लाइक दे तभी मैं तेरी पिक्चर पर लाइक करूँगा। आज जब भी वो समय याद करता हूँ तो हँसी रोके नहीं रूकती। हर दो मिनट बाद हाथ अपने आप फ़ोन पर जाता था सिर्फ ये देखने के लिए की कितने लाइक्स बढ़ गए हैं। मै इस बात की शर्त लगा सकता हूँ की आप भी ऐसे किसी दौर से ज़रूर गुज़रे होंगे।  लेकिन मै भगवान का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने सही समय पर मुझे सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करने की समझ दी।

क्या अजीब बचकानी हरकतें थी वो, खैर वक़्त बदला और वक़्त के साथ साथ समय बर्बाद करने के तरीकों में भी बड़ा बदलाव आया। पहले जहाँ लोग अनजाने लोगो की प्रोफाइल देख कर घंटो बर्बाद किया करते थे वही आज प्रोफाइल की जगह TikTok जैसे अतरंगी apps में वीडियो बनाने और वीडियो देखने में बर्बाद करते हैं। बार बार फ़ोन उठा कर उन्हें अपने व्यूज चेक करने की बीमारी लग गयी है। सोचिये जो सोशल मीडिया को इतना समय देते हैं क्या असल ज़िन्दगी में वो लोग इतने ज़्यादा सोशल हो पाते होंगे ? मेरा मानना है की जो लोग सोशल साइट्स पर जैसे दिखते हैं वो असल में उसके बिलकुल उलट होते हैं, आप भी कहीं न कहीं मेरे इस विचार से सहमत होंगे।

आइये इसे एक उदहारण से समझने की कोशिश करते हैं। मेरा एक दोस्त है वो काफी दिनों से किसी सोशल वेबसाइट पर एक लड़की से बात किया करता था और अक्सर हमें अपनी बातों के बारे में बताया करता था, पढ़ने में होशियार था और जैसा की ज्यादातर पढ़ाकू बच्चे होते हैं वो काफी कम बोलता था।  तो एक दिन मैंने उसे काफी उदास देखा और उस से उदासी की वजह जाननी चाही लेकिन उसने मुझसे वजह साझा नहीं की और बात टाल दी। अगले कुछ समय वो हमसे दूर दूर रहने लगा।

एक दिन रास्ते में मुझे उसकी मम्मी मिली और उन्होंने मैंने उनसे पुछा की "क्या  गौरव (बदला हुआ नाम) की तबियत ठीक है ?? वो फ़ोन भी नहीं उठा रहा। आजकल खेलने भी नहीं आता..सब ठीक तो है आंटी ??" मेरा बस इतना कहना था की आंटी अचानक सब बताने लगी की आजकल न तो वो पढाई करता है, न ही घर में ढंग से किसी से बात करता है, हमेशा उदास और खोया खोया सा रहता है। और फ़ोन तो उसके हाथ से कभी छूटता ही नहीं। ये बताते ही आंटी बोल पड़ी की "बेटा आप बात करो उस से, हो सकता हो आपको ही कुछ बता दे।

मैंने फैसला किया की मैं गौरव से मिलने जाऊंगा। घर पहुँच कर देखा तो मुझसे वो बिलकुल नार्मल तरीके से मिला। बहुत टटोलने पर उसने बताया की जिस लड़की से वो बात करता है वो आजकल ढंग से रिप्लाई नहीं दे रही। और अगर बात करती भी है तो बहुत लिमिटेड वर्ड्स में करती है जैसे हाँ, न, अच्छा आदि। गौरव ने जब मुझे अपने messages पढवाये तो मैंने पाया की ये तो वन वे कन्वर्सेशन चल रही है। जिसमे गौरव हर रिप्लाई में लम्बी लम्बी कहानियाँ छाप कर भेज रहा है और उधर से जवाब में बस हाँ, ना, अच्छा जी आ रहे हैं। ये देख मै काफी हैरान था की जो इंसान इतना introvert है वो messages में इतना कैसे बात कर सकता है।

मैंने गौरव को समझाया की एक इंसान जिसको तूने आजतक सामने से देखा नहीं, जिसे तू जानता नहीं वो तेरे लिए तेरे घरवालों और तेरे दोस्तों से बढ़कर कैसे हो सकता है? और वो भी सिर्फ कुछ महीनों में? इस सारी घटना से ये तो पता चल गया की कैसे ये Virtually सोशल होना एक प्रकार का मीठा ज़हर है और ज़्यादा मात्रा में ये ज़हर बहुत घातक होता है। एक इंसान के प्रति कुछ महीनों का आकर्षण आपके घरवालों और आपके दोस्तों के प्यार पर किस कदर हावी हो जाता है पता ही नहीं चलता। वो कहते है न की "Excess of everything is bad", बिलकुल ठीक कहते हैं। अरे अगर चीनी भी ज़्यादा इस्तेमाल करनी शुरू जाए तो मधुमेह की बीमारी हो जाती है ये तो फिर भी मीठा ज़हर है। सोशल मीडिया से depression और भी कईं कारणों से हो सकता है जैसे की Cyber Bullying जिसमे एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा गाली गलोच व अन्य बातें कही जाती है। इस तरह के depression के परिणाम तो कभी कभी जानलेवा तक हो जाते हैं। ब्लू वेल गेम याद है न आपको? बच्चो को डिप्रेस करके उन्हें जान देने के लिए उकसाना कितना घिनोना काम था वो।

ये आपको physically तोड़े या न तोड़े लेकिन आपको mentally नुक्सान पहुंचाने का पूरा माद्दा रखता है। खैर, आप सोच रहे होंगे की गौरव के साथ क्या हुआ? वक़्त के साथ साथ गौरव ने अपने अंदर कईं चेंजेज़ लाये। उसे गिटार सीखने का शौंक है और वो सीख भी रहा है। पढाई में फिर से पहले की तरह ध्यान देने लगा है। सब के साथ अच्छे से बात करता है। शाम को खेलने आता है। और सबसे बड़ी बात, वो हमसे अपनी समस्याएँ शेयर करता है।

लोग इन प्लेटफॉर्म्स पर कईं कईं घंटे बिता देते हैं बिना कुछ बोले। ऑफिस से घर लौटते वक़्त मेट्रो, बसों या ट्रेनों में बैठे लोगो को जब अपने फोन की स्क्रीन पर स्क्रॉल डाउन करते देखता हूँ तो मुझे कभी कभी अचम्भा होता है की एक समय था जब ऑफिस से लौटते वक़्त लोग आपस में बातें किया करते थे अपने दुःख दर्द और ग़मों को एक दूसरे से साझा किया करते थे। वो कहते हैं न की ख़ुशी बाँटने से बढ़ती है और दुःख बाँटने से कम होते हैं। कभी कभी तो ऐसे ही सफर के दौरान नए रिश्तों की मज़बूत नींव डल जाया करती थी।

पर वक़्त का फेर देखिए की अब न तो वो समय रह गया है और न ही वो बाते, न ही वो रिश्ते रह गए हैं और न ही वो नाते। देखा जाए तो आधुनिक बनते बनते हम असल में मानसिक तौर पर धीरे धीरे पिछड़ते चले जा रहे हैं। अपने हाथों हम अपना नुक्सान खुद ही कर रहे हैं। अपने दिल का दर्द दूर बैठे इंसान के साथ लिख कर शेयर कर लेंगे लेकिन वही बात अपने माँ-बाप या करीबी व्यक्ति से नहीं करेंगे। एक समय था जब सुबह उठकर लोग अपने माता पिता के पैरों को छू कर आशीर्वाद लिया करते थे लेकिन आज सबसे पहले सुबह उठकर नींद भरी आँखों से अपना इनबॉक्स चेक किया जाता है की कहीं कोई मैसेज तो नहीं आया। मैसेज आया तो ठीक और नहीं आया तो आज का युवा तनाव लेने में सबसे आगे है।

आलम ये है की घरवालों से बात करे न करे लेकिन एक अंजान व्यक्ति से घंटो घंटो फेसबुक पर बातें कर लेते हैं। और यही बेफिज़ूल की बातें कब धीरे धीरे आकर्षण का रूप ले लेती हैं पता ही नहीं लग पाता और ये आकर्षण जब ओबसेशन बन जाये ऐसा पता लगने से पहले ही बहुत देर हो चुकी होती है। थोड़ा सा सेल्फिश बनो और अपने आप को वक़्त दो। सोचो ऐसा क्या है जिसे करने से आपको खुशी मिलती है। ऐसा क्या है जो हमेशा से करना चाहते थे लेकिन कभी वक़्त नहीं दे पाए। अपने मन को खंगालिए उसे टटोलिये और अपने आपको और अपने परिवार को समय दीजिये। अपनी बातें उनसे शेयर कीजिये , उनके साथ हँसिये और क्वालिटी टाइम स्पेंड कीजिये। यकीन मानिये आपका परिवार और आपके दोस्त आपके मानसिक तनाव का सबसे बड़ा और फ्री टॉनिक है। भगवान के दिए इस चमत्कारिक टॉनिक को व्यर्थ मत समझे। इसमें बहुत ताकत है।

Depression se bahar kaise nikle? ऑफिस घर पर लाएंगे तो इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिलेगा     

Sushant singh rajput हमें क्या सीखा गए और Depression se bahar kaise nikle?

कईं लोगो को आपने सिर्फ पैसा पैसा गाते सुना होगा। दिन हो या रात पैसा कमाने की धुन इस कदर उन पर सवार हो जाती है की कहीं न कहीं वो अपने परिवार को समय भी नहीं दे पाते। जिस का परिणाम ये होता है की उनके पारिवारिक और वैवाहिक जीवन पर बहुत गहरा असर होता है। ऐसे लोगो से मेरा सीधा सीधा सवाल है की जिस परिवार के लिए आप कमा रहे हो अगर उसी परिवार को आप समय ही न दे पाए, अपने बच्चो के उन सुहावने और शरारती पलों का आनंद न उठा पाए, अपने पेरेंट्स के साथ बैठ कर उनसे बात नहीं कर पाए, अपनी बीवी के साथ बैठ कर यदि खाना न खा पाए तो बेशक आप पैसा कमाने में जीत गए हो लेकिन रिश्तो को हार गए।

इंसान 12 घण्टे घर से बाहर रहता है, मेहनत करता है 8 घण्टे की नींद लेता है फिर अगले दिन 12 घंटे के थकान भरे सफर पर निकल पड़ता है ताकि वो दिन के वो 4 घंटो को आराम से बिता सके। तनाव तो बढ़ेगा ही और कब ये तनाव अवसाद की शक्ल इख़्तेयार कर लेगा आप सोच भी नहीं सकते। इसलिए जब आप घर पर है तो घर पर ही रहिये, अपने ऑफिस या दुकान को घर पर लाने की कोई ज़रुरत नहीं है। जब तक बहुत ज़्यादा ज़रूरी न हो ओवरटाइम मत कीजिये।

ये बात हमेशा ध्यान रखिये की पैसा तो फिर भी कमा लेंगे लेकिन बच्चो का बचपना, माँ बाप का प्यार एक बार चला गया तो लौट कर नहीं आएगा। कंपनी किसी की सगी नहीं होती जब कंपनी का बुरा समय आता है तो कंपनी कर्मचारियों से ओवरटाइम कराती है लेकिन जब किसी कर्मचारी को कंपनी की ज़रुरत होती है उस वक़्त ज़्यादातर कम्पनीज़ अपने कदम पीछे खिंच लेती है। आप एक छुट्टी मांग कर देख लो वो अपनी औकात दिखाने में ज़रा भी देर नहीं लगाएंगे। यहाँ तक की अगर आपको आपके हक़ की छुट्टी मिल भी गयी तो उसपर भी आपके ऊपर एहसान जताना नहीं भुला जायेगा।

पैसा ज़रूरी है लेकिन परिवार ज़रुरत है। Sushant singh rajput अपने आखरी समय में अपने परिवार से दूर थे। जब उनके मन में अपनी जान लेने का विचार आया जो की मात्र क्षण भर का रहा होगा अगर उस क्षण समय उन्हें अपने पिता या परिवार के किसी अन्य सदस्य का सहारा मिल गया होता तो हो सकता है की Sushant singh rajput आज हमारे बीच ज़िंदा होते। इसे मै Sushant और उनके परिवार की किस्मत का फेर ही कहुँगा जो अंतिम समय में एक साथ न हो पाए। वरना सोचिये की उनका परिवार कितना स्ट्रांग रहा होगा जिनके सारे बच्चे इतनी मुश्किलों के बाद भी इतने कामयाब हो गए।  दीपिका पादुकोण आज हमारे बीच सही सलामत है तो इसका बहुत बड़ा श्रेय उनकी माँ को जाता है जिन्होंने सही समय पर उनके लक्षणों की पहचान की और उन्हें Depression se bahar kaise nikle? ये समझने में मदद की।

Depression se kaise bahar nikle इस सवाल पर मेरा क्या मानना है ?

इतिहास के पन्नो को पलट कर देखा जाए तो ऐसी बहुत सारी कहानियाँ मिल जाएंगी जिनका अंत इतना इतना  दुखद हुआ होगा। Sushant singh rajput के जाने का गम आज देश के हर वर्ग को है। लेकिन अपने पीछे जो अनसुलझे सवाल वो छोड़ गए हैं वही सवाल शायद पूरी उम्र उनके परिवार और मित्रो के ज़ख्मो पर नमक छिड़कने का काम करेंगे। मेरी विनती है आप सब लोगो से और खासतौर पर उन लोगों से जो अवसाद से ग्रसित हैं की माँ बाप ने हमें जन्म दिया है उन्होंने हमारे बचपन के अनमोल पलों को तस्वीरों में कैद किया, बुखार में माथे पर गर्म पट्टी की, रात रात भर हमारे लिए जागे और करियर में आगे बढ़ाने के लिए हर प्रकार से हमारी सहायता की। अपने लिए न सही लेकिन अपने माता पिता के बारे में एक बार ज़रूर सोचिये।

क्या किसी के द्वारा मारा गया ताना या इग्नोर किया जाना आपके माता पिता के बरसो पुराने प्यार और भगवान से आपकी लम्बी उम्र के लिए किये जाने वाली प्रार्थनाओं से बढ़कर हो गया? क्या किसी एग्जाम में आपके फेल हो जाने से आप अपनी ज़िन्दगी में फेल गए? जी नहीं फेल तो आप जब होंगे जब आप इन सभी और इनके जैसी अनेको कठिन परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देंगे और अपनी ज़िन्दगी खत्म करने वाला एक कायरतापूर्ण फैसला लेंगे। फेल आप उस दिन होंगे जिस दिन आपके माता पिता को लोग दया की नज़रो से देखेंगे। फेल आप उस दिन होंगे जिस दिन लोग आपको आपके बेहतरीन काम करने के लिए नहीं बल्कि अपनी जीवन लीला समाप्त करके परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देने के लिए याद करेंगे।  क्योंकि एक इंसान भले ही अपनी जान देकर एक पल में अपने कर्तव्यों और अपनी दिक्कतों से छुटकारा पा सकता है लेकिन ऐसा करके माँ बाप के प्रति अपने कर्तव्यों को वो बीच में ही त्याग देता है।

दुख इस बात का है की Sushant singh rajput को इतना बेहतरीन कलाकार होने के बावजूद इस वजह से याद किया जायेगा की कैसे एक असली योद्धा होने के बावजूद उन्होंने इस दुनिया को छोड़कर चले जाने का फैसला ठीक समझा। उनके अचानक चले जाने से न ही सिर्फ बॉलीवुड बल्कि देश का युवा वर्ग भी कही न कही बहुत ज़्यादा निराश और हताश महसूस कर रहा है।  भगवान से मेरी प्रार्थना है की Sushant जहाँ भी हो कम से कम अब दुखी न हो। उनके परिवार को परमात्मा इस दुख से लड़ने की हिम्मत दे। अगर मेरे इस पोस्ट से किसी एक इंसान की सोच भी बदलती हो तो मैं अपने आपको बड़ा ही भाग्यशाली समझूंगा की मैं किसी को उसके बुरे वक़्त से निकल पाने में मदद कर पाया  और उसकी ज़िन्दगी में एक छोटा सा बदलाव ला पाया। बस आगे और कुछ कहने की हिम्मत नहीं है,  नमस्कार।

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥



























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